हरित गृह प्रभाव एवं जलवायु परिवर्तन (Green House Effect and Climate Change)
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भूमण्डलीय ऊष्मीकरण (Global Warming)
धरती के वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ने की वजह से धरातल के तापमान में लगातार विश्वव्यापी बढ़ोतरी वृद्धि हो रही इस घटना को ही ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (Effects of Global Warming)
- समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी
- मौसम में बदलाव और अनियमित वर्षा
- मौसमी घटनाएं जैसे अत्यधिक लू, तूफान, बाढ़ आदि की घटनाओं में वृद्धि।
- हिमनद , हिमखंडों का पिघलना ।
- जानवरों के आवास का ह्रास होने की वजह से उनकी आबादी का नुकसान होना।
- बीमारियों का फैलना ।
- मूंगे की चट्टान (Coral Reefs) की ब्लीचिंग।
- समुद्र के तापमान में वृद्धि की वजह से फाइटोप्लांकटन (Phytoplankton) का नुकसान होना।
हरित गृह प्रभाव (Green House Effect )
ग्रीन हाउस इफेक्ट एक प्राकृतिक घटना है जो वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों द्वारा संपादित होती है। ये गैसे धरती के चारों तरफ एक कंबल का काम करती हैं और धरातल के तापमान को बहुत कम नहीं होने देती हैं, जिससे की धरती, जीवों के अस्तित्व के लिए उपयुक्त बनी रहे।
हरितगृह प्रभाव की वजह से ही वर्तमान में धरती का औसत तापमान 15 0C है अन्यथा ग्रीन हाउस गैसों की अनुपस्थिति में धरती का तापमान -19 0C होता जिससे कि धरती पर जीवों का अस्तित्व मुश्किल होता।
ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसे, क्रमानुसार – जलवाष्प > कार्बन डाइऑक्साइड > मिथेन
- जलवाष्प (Water Vapor):
- ग्रीन हाउस इफेक्ट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार लेकिन वातावरण में इसकी मात्रा में वृद्धि में मानवीय गतिविधियाँ का योगदान कम है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2):
- मानवीय गतिविधियों की वजह से वातावरण में उत्सर्जित होने वाली प्रमुख गैस है।
- ईंधन के जलने और कारखानों से उत्सर्जित।
- जीवाश्म ईंधन का कम प्रयोग और अधिक पेड़ पौधे लगाकर वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम की जा सकती है।
- मिथेन (CH4):
- वेटलैंड से बड़े पैमाने पर उत्सर्जित (by decomposition of organic matter) इसके अलावा मानवीय गतिविधियों जैसे खेती पशुपालन और कारखानों से उत्सर्जित।
- नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous oxide N2O):
- स्रोत मिट्टी और समुद्र में जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन का ब्रेकडाउन करना, खेती, पशुपालन और कारखानों द्वारा उत्सर्जित।
ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (Global Warming Potential – GWP)
ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) को विभिन्न गैसों के ग्लोबल वार्मिंग प्रभावों को मापने के लिए विकसित किया गया था। ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल एक माप होती है, जो यह दर्शाती है कि कोई विशेष गैस ग्लोबल वार्मिंग के लिए कितना प्रभावी हो सकती है।
किसी विशेष गैस का ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (Global Warming Potential) एक माप है जिससे हमे यह पता चलता है कि किसी निश्चित अवधि (आमतौर पर 100 वर्ष) में 1 टन मात्रा की कोई विशेष गैस, 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में ऊर्जा की कितनी मात्रा अवशोषित करती है।
उच्च Global Warming Potential वाली गैसें कम GWP वाली गैसों की तुलना में प्रति पाउंड अधिक ऊर्जा अवशोषित करती हैं, और इस प्रकार पृथ्वी को गर्म करने में अधिक योगदान देती हैं।
मीथेन (CH4) का Global Warming Potential, 100 साल के लिए CO2 से 20 गुना अधिक है। आज उत्सर्जित के, औसतन वायुमंडल में 12 वर्षों तक बनी रहती (Life time of Methane is 12 years) है।
नाइट्रस ऑक्साइड (NO) का GWP, CO2 से 300 गुना अधिक है। आज उत्सर्जित NO2 औसतन 120 वर्षों तक वातावरण में रहता है।
क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFCs), हाइड्रो फ्लोरो कार्बन (HFCs), हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन (HCFCs), परफ्लूरो कार्बन (पीएफसी) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6 having highest value of GWP about 23900 with a lifetime of 3200 years) को एन उच्च ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल गैस कहा जाता है क्योंकि CO2 की तुलना में काफी अधिक गर्मी अवशोषित करते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग महत्वपूर्ण तथ्य
- वायुमंडल के प्राकृतिक संतुलन के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की उपयुक्त सांद्रता है – 0.03%
- जलवायु परिवर्तन का कारण है – ग्रीन हाउस गैसें, ओजोन पर्त का क्षरण तथा प्रदूषण
- ग्रीन हाउस इफेक्ट वह प्रक्रिया है – जिसमे वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड द्वारा इन्फ्रारेड विकिरण शोषित कर लिए जाने से वायुमंडल का तापमान बढ़ता है।
- एक प्राकृतिक प्रकिृया जिसके द्वारा किसीग्रह या उपग्रह के वातावरण में मौजूद कुछ गैसें ग्रह/उपग्रह के वातावरण के ताप को अपेक्षाकृत अधिक बनाने में मदद करती है – गैसों के वायुमंडल में जमा
- ग्रीन हाउस गैसों की संकल्पना की थी – जोसेफ फोरियर ने
- किसी गैस के अणुओंकी दक्षता एवं उस गैस के वायुमंडलीय जीवनकाल पर निर्भर करता है – गैस का वैश्विक तापन विभव (GWP: Global Warming Potential)
- वायुमंडल में उपस्थित वह गैसें जो तापीय अवरक्त विकिरण की रेंज के अंतर्गत विकिरणों का अवशोषण एवं उत्सर्जन करती हैं – ग्रीन हाउस गैसें
- प्राकृतिक रूप में पाई जाने वाली ग्रीन हाउस गैस जो सर्वाधिक ग्रीन हाउस इफेक्ट करती है – जलवाष्प
- एक गैस जो धरती पर जीवन के लिए हानिकारक और लाभदायक दोनों है – कार्बन डाईऑक्साइड
- वह देश जिसे दुनिया में ‘कार्बन निगेटिव देश’ के रूप में माना जाता है – भूटान
- कार्बन डाईऑक्साइड गैस ग्लाबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, क्योंकि वायुमंडल में इसकी सांद्रता अन्य ग्रीन हाउस गैसों की तुलना में है – बहुत अधिक
- भूमंडलीय ऊष्मन की आशंका वायुमंडल में जिसकी बढ़ती हुई सांद्रता के कारण बढ़ रही है – कार्बन डाइऑक्साइड की
- एक सर्वाधिक भंगुर पारिस्थितिक तंत्र है, जो वैश्विक तापन द्वारा सबसे पहले प्रभावित होगा – आर्कटिक एवं ग्रीनलैंड हिमचादर
- प्रमुख ग्रीनहाउस गैस ‘ मेथेन’ के स्रोत हैं – धान के खेत, कोयले की खान, पालतूपशु, आर्द्रभूमि, समुद्र, हाइड्रेट्स (Hydrates)
- पृथ्वी काल (Earth Hour): यह जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी को बचाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता लाने हेतु ‘वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर’ (WWF: World wide Fund for Nature) द्वारा आयोजित कियाजाने वाला एक विश्वव्यापी आंदोलन है जिसमे प्रतिभागी प्रतिवर्ष एक निश्चित दिन, एक घंटे लिए बिजली बंद कर देते हैं
- ग्रीन हाउस गैस प्रोटोकॉल (Greenhouse Gas Protocol) : यह सरकार एवं व्यवसाय को नेतृत्व देने वाले व्यक्तियों के लिए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को समझने, परिमाण निर्धारित करने एवं प्रबंधन हेतु एक अंतरराष्ट्रीय लेखाकरण साधन है यह ‘वर्ल्उ रिसोर्स इंस्टीट्यूट’ (WRI) तथा ‘वर्ल्ड बिजनेस काउंसिल ऑन सस्टेनेबलडेवलपमेंट’ (WBCSD) द्वारा किया गया है
- वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में जो पद्धतियां मृदा में कार्बन प्रच्छादन/संग्रहण में सहायक है – समोच्च बांध, अनुपद सस्यन एवं शून्य जुताई
- यदि किसी महासागर का पादप प्लवक किसी कारण से पूर्णतया नष्ट हो जाए, तो इसका प्रभाव होगा – कार्बन सिंक के रूप में महासागर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा एवं महासागर की खाद्य श्रृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- आईपीसीसी’ (Intergovernmental Panel on Climate Change) द्वारा प्रकाशित “Assessing Key Vulnerablilities and the risk from Climate Change” नामक रिपोर्ट के अनुसार, यदि विश्व तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 20C बढ़ जाता, तो पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र का रूपांतरित हो जाएगा – 1/6 भाग
- यह सरकारों, व्यवसायों, नागरिक समाज और देशी जनों (इंडिजिनस पीपल्स) की एक वैश्विक भागीदारी है, यह देशों की, उनके वनोन्मूलन और वन निम्नीकरण उत्सर्जन कर करने (रिड्यूसिंग एमिसन्स फ्रॉम डीफॉरेस्टेशन एंड फॉरेस्ट डिग्रेडेशन+) (REDD+) प्रयासों में वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान कर मदद करती है – वन कार्बन भागीदारी सुविधा (फॉरेस्ट कार्बन पार्टनरशिप फेसिलिटी)
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