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Gandhi-Irwin pact / Delhi Pact

Gandhi-Irwin pact / Delhi Pact

गाँधी-इरविन समझौता या दिल्ली समझौता

प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद, ब्रिटिश गवर्नमेंट को यह बात समझ में आ गई कि भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की भागीदारी के बिना भारतीयों से समझौते का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। इसी क्रम में गाँधी जी और दांडी मार्च के राजनीतिक कैदियों को जेल से रिहा किया गया।

यह समझौता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्रिटिश गवर्नमेंट ने पहली बार भारतीयों से बराबरी के स्तर पर बात की थी।

गाँधी–इरविन समझौते की मध्यस्थता सर तेज बहादुर सप्रू ने की थी।

19 फरवरी 1931 को गाँधी जी ने भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन से मुलाकात की, उनकी बातचीत और समझौते का प्रयास लगभग 15 दिनों तक चला। अंततः 5 मार्च 1931 को गाँधी जी और लार्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसे गाँधी-इरविन समझौता के नाम से जाना जाता है।

इसी समझौते के संदर्भ में सरोजिनी नायडू ने गाँधी जी तथा लॉर्ड इरविन को ‘दो महात्मा’ कहा था।

समझौते में लॉर्ड इरविन द्वारा स्वीकार की गई शर्ते:

  • हिंसा के आरोपियों को छोड़कर शेष राजनीतिक बंदियों को सरकार रिहा कर देगी तथा राजनीतिक मुकदमे वापस लिए जाएंगे।
  • भारतीय लोग विदेशी वस्तुओं तथा मदिरा की दुकानों के सामने शांतिपूर्ण धरना दे सकते हैं।
  • भारतीयों को घरेलू उपयोग के लिए समुद्र किनारे फिर से नमक बनाने का अधिकार मिला।
  • सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने वालों को, वापस काम पर रखने में सरकार उदारता दिखाएगी।

लॉर्ड इरविन द्वारा अस्वीकार की गई शर्ते:

  • लॉर्ड इरविन ने कॉन्ग्रेस की 2 शर्ते अस्वीकार कर दी-
    1. भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी न दी जाए।
    2. पुलिस द्वारा की गई जातियों की जाँच कराई जाए।

समझौते में कॉन्ग्रेस द्वारा स्वीकार की गई शर्ते:

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर देगी।
  • द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
  • इस समझौते के बाद
    • मार्च 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का एक विशेष अधिवेशन सरदार पटेल की अध्यक्षता में कराची में हुआ। जिसमें ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग और ‘गाँधी–इरविन समझौते’ को स्वीकार किया गया।
    • 7 सितंबर 1931 से होने वाले द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए गाँधी जी कॉन्ग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन गए।
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