Samajik aur Dharmik Sudhar Andolan
Hello दोस्तों 😊 ! यहाँ आप भारत में हुए सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन (Samajik aur Dharmik Sudhar Andolan) के बारे में जानेंगे।
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सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन
- १९वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक भारतीय समाज में जातिपात, छुआछूत, और अंधविश्वास से जकड़ा हुआ था। कई भारतीय प्रथाएं तथा जर्जर रीति-रिवाज जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह , कुलीन बहु विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध आदि, भारतीय मूल्यों के अनुरूप नहीं थी, फिर भी धर्म के नाम पर उनका पालन किया जा रहा था। भारत पर अंग्रेजों की विजय ने भारतीय समाज की कमजोरियों को और अधिक स्पष्ट कर दिया था। हिंदू समाज का निचला तबका सामाजिक सम्मान और आर्थिक सुविधाओं के लिए ईसाई धर्म स्वीकार कर रहा था।
- ब्रिटिश मिशनरियों द्वारा भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया जिससे पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान भारतीयों तक पहुंचने लगा और परिणाम स्वरूप भारतीयों के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
- राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, ईश्वर चंद्र विद्या सागर और अन्य प्रबुद्ध भारतीयों ने भारतीय समाज के पतन के मूल कारणों की खोज प्रारंभ की और पाया कि भारतीय समाज की दुर्दशा का मूल कारण भारतीय समाजिक ढांचे और संस्कृति में में व्याप्त कमजोरियां थी। अतः धर्म और की रक्षा के लिए सुधार कीआवश्यकता थी।
- १९वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में प्रबुद्ध भारतीयों द्वारा समाज सुधार के जो प्रयत्न किए गए उसकी स्पष्ट धाराएं थी।
- सुधारवादी आंदोलन: मुख्यतः पश्चिम ज्ञान विज्ञान से प्रभावित था जैसे- ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, अलीगढ़ आन्दोलन, यंग बंगाल आन्दोलन आदि
- पुनरूत्थानवादी आंदोलन: प्राचीन भारतीय ज्ञान और वैदिक संस्कृति के गौरवगान और उसके पुनरूत्थान पर बल देते थे जैसे-आर्य समाज, देवबंद आन्दोलन
- इन सामाजिक सुधार आंदोलनो से सर्वाधिक प्रभावित बुद्धिजीवी, मध्यम वर्ग, नगरीय उच्च जातियां एवं रजवाड़े थे।
- सामाजिक सुधार आंदोलनो से अप्रभावित वर्ग ‘ निम्न सर्वसाधारण वर्ग ‘ था।
(1) ब्रह्म समाज
(2) आर्य समाज
प्रार्थना समाज
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