1857 की क्रांति (1857 ki Kranti)
1857 की क्रांति, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम या सिपाही विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। 1857 की क्रांति (1857 ki Kranti) ब्रिटिश शासन की खराब नीतियों और शोषण के खिलाफ भारतीयों द्वारा व्यापक पैमाने पर किया गया विरोध था।
इस क्रांति की शुरुआत मुख्य रूप से 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई। धीरे-धीरे इस क्रांति की आग कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। क्रांति की शुरुआत तो ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन जल्द ही उसका स्वरूप एक जनव्यापी आंदोलन में बदल गया, जिसे बाद में भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। हालांकि, इस क्रांति को दबाया गया और नाकाम ठहराया गया, लेकिन इसका प्रभाव ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आंदोलनों और राष्ट्रीय चेतना को प्रभावित करता रहा।
- 1857 की क्रांति का प्रतीक – कमल और रोटी।
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सरकारी इतिहासकार S. N. SEN थे।
- 1857 के विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री Viscount Palmerston थे।
- 1857 के विद्रोह समय के समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग थे।
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1857 की क्रांति (1857 ki Kranti) के प्रमुख कारण
(१) आर्थिक कारण:
- ब्रिटिशर्स ने भारतीयों का आर्थिक शोषण करने के लिए समय समय पर मनचाहे कानून और नीतियां बनाएं जैसे कि,
- नई-नई भू राजस्व व्यवस्थाए जैसे जमींदारी व्यवस्था, रैयतवाड़ी तथा महालवाड़ी व्यवस्था की मदद से अंग्रेजों ने उच्च दरो पर कर की वसूली की।
- अकाल की स्थिती में भी किसानों से लगान की वसूली की , कर चुकाने के लिए किसानों ने महाजनों से कर्ज लिया और उनके चुंगल में फसते गए।
- कृषि के वाणिज्यीकरण ने कृषक-वर्ग पर बोझ को बढ़ा दिया तथा उनकी इच्छा के विरुद्ध वाणिज्यिक फसलों का उत्पादान किया।
- ददनी प्रथा की मदद से बागान और नील मजदूरों से जबरन श्रम कराया।
- मुक्त व्यापार की नीति को अपनाने से स्थानीय हस्तशिल्प/कुटीर उद्योगों का पतन हुआ जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ी और धन के बहिर्गमन आदि कारकों ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट कर दिया|
(२)राजनीतिक कारण:
- अंग्रेजी शासन की नीतियों की वजह से कई भारतीय शासकों के हित प्रभावित हुए, जिससे विद्रोह के समय इन शासकों ने विद्रोहीयों का साथ दिया। जैसे कि,
- लॉर्ड वेलेजली (१७९८–१८०५) की सहायक संधि–१७९८ से कई भारतीय राज्य अपनी स्वतंत्रता खो बैठे थे।
- लॉर्ड एमहार्स्ट (१८२२–२८)ने मुगल बादशाह की बादशाहत मानने से इन्कार कर दिया।
- लॉर्ड डलहौजी (१८४८–१८५६) ने व्यपगत की नीति( Doctrine of Lapse) लगाकर गोद लेने की प्रथा को अस्वीकार कर दिया था। झांसी और ऐसे कई राज्य जिनका कोई वारिस नही था, का विलय कर लिया। वो सभी अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए एक अवसर की तलाश में थे, इसलिए विद्रोहियों का साथ दिया।
- डलहौजी ने दत्तक पुत्रों की पेंशन भी रुकवा दिया था जैसे अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंदू पंत) की पेंशन। अतः इससे प्रभावित होने वाले शासक भी असंतुष्ट थे और विद्रोहियों का साथ दिया।
- डलहौजी ने मुगल बादशाह को १८४९ में लाल किला खाली करने को कहा।
- अवध राज्य १७६५ की इलाहाबाद की द्वितीय संधि के बाद से ही सदैव अंग्रेजों का मित्र राज्य रहा था लेकिन १८५६ में दलहौजी ने कुशासन का आरोप लगाकर अवध राज्य को ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया तथा नबाब वाजिद अली शाह (अवध केअंतिम नबाब) को अपदस्थ कर दिया। यह निर्णय राज्य की जनता को नागवार गुजरा क्योकि उस समय राज्यों की जनता अपने राजा को धर्म और संस्कृति का संरक्षक मानती थी।
(३) सामाजिकऔरआर्थिक कारण:
- 1813 के चार्टर एक्ट से क्रिश्चियन मिशनरियों को भारत आने और ईसाई धर्म का प्रचार करने की छूट मिल गई। इसके बाद ये मिशानरियां शिक्षण संस्थाओं, बाजारों और जेलों में खुलेआम ईसाई धर्म का प्रचार करने लगी।ईसाई धर्म-प्रचारक बङे उद्दंड थे। वे खुले रूप से हिन्दु देवताओं के अवतारों तथा मुसलमानों के पैगंबर को गालियाँ देते थे। इससे भाारतीयों में विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।
- अंग्रेजों ने सामाजिक दृष्टि से भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार किया।जैसे–जैसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार होने लगा , अंग्रेज अपनी प्रजातीय श्रेष्ठता पर जोर देने लगे और भारतीयों को सभ्य बनाना अपना अधिकार समझने लगे काले गोरे का भेद स्पष्ट रूप से उभरने लगा । भारतीय रेलगाङी के प्रथम श्रेणी में सफर नहीं कर सकते थे।अंग्रेजों द्वारा संचालित होटल व क्लबों की तख्तियों पर लिखा होता था “Indians and dogs are not allowed”।
- उस समय भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए अंग्रेजों ने कई नियम बनाए जैसे सती प्रथा एक्ट –1829 , कन्या वध निषेध एक्ट – 1870 तथा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम–1856। ये सुधार बहुत सारे भारतीयों को रास नहीं आया।उन्हें ऐसा लगा कि अंग्रेज सामाजिक नियमों में हस्तक्षेप कर भारतीय सभ्यता को नष्ट करना चाहते थे।
(४) सैनिक कारण:
- यद्यपि कि अंग्रेजों ने भारतीय सेना की सहायता से ही भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित की थी फिर भी सेना में वेतन,भत्ते एवं पदोन्नति के संबंध में भारतीय सैनिकों के साथ भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गयी।जिससे भारतीय सैनिकों में असंतोष था।
- 1857 का सैन्य विद्रोह कोई प्रथम सैन्य विद्रोह नही था इससे पहले भी कई सैनिक विद्रोह की घटनाएं हो चुकी थी जैसे की,
- प्रथम धार्मिक सैन्य विद्रोह–1806 वेल्लोर में जब लॉर्ड विलियम बैंटिक मद्रास का गवर्नर था। उसने यह आदेश जारी किया कि कोई भी सैनिक धार्मिक चिह्न जैसे कुण्डल, तिलक, पगड़ी और दाढ़ी नहीं रख सकता जिससे सैनिकों की धार्मिक भावनाए आहत हुई।
- द्वितीय धार्मिक सैन्य विद्रोह–1824 में वर्मा जाने के मुद्दे पर ४७वीं रेजिमेंट द्वारा। ब्रिटिश गवर्नमेंट ने भारतीय सैनिकों को समुद्र पर करके वर्मा जाने का आदेश दिया था जबकि उस समय भारतीय समाज में यह मान्यता थी कि समुंद्र पार करने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है। परिणाम स्वरूप भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
- डाकघर अधिनियम–1854 के लागू होने से जो सैनिक पहले घर पर मुफ़्त में पत्र भेजते थे अब उस पर पैसे लगने लगे थे जिससे सैनिकों में असंतोष था।
- ब्रिटिश सेना में बंगाल कमान सबसे बड़ी थी और बंगाल कमान के अधिकतर सैनिक अवध यानि उत्तर प्रदेश से आते थे। इन सैनिकों पर अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय का भी प्रभाव पड़ा। साथ ही बंगाल कमान के अधिकतर सैनिक ऊंची जाति के थे जो अंग्रेजों का अनुशासन स्वीकार नहीं कर पाते थे।
(५) तात्कालिक कारण:
- भारतीयों में यह विश्वास, दृढ होता जा रहा था कि अंग्रेज भारतीय धर्म,रीति-रिवाजों व संस्कारों को नष्ट करना चाहते हैं। ठीक ऐसे वातावरण में चर्बी वाले कारतूस की घटना हुई। दिसंबर 1856 में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने पुरानी ब्राउन बेस बंदूकों के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल के प्रयोग का निर्णय लिया।जिनमे कारतूस भरने के लिए कारतूस को पहले मुंह से खींच कर काटना पड़ता था। उस समय बंगाल कमान की ३ प्रमुख छावनियां थी, जिनमे यह अफवाह फैल गई कि कारतूसों के जिस हिस्से को दांत से खींचा जाता है, वह वास्तव में गाय और सूअरके चर्बी का बना हुआ है| सैनिकों को लगा कि अंग्रेज उनके धर्म को भ्रष्ट करना चाहते हैं।
- दमदम छावनी –जनवरी १८५७–सबसे पहले यही पर अफ़वाह फैली थी।
- बहरामपुर छावनी – फरवरी १८५७
- बैरकपुर छावनी – मार्च १८५७
- मंगल पांडे बैरकपुर छावनी के ३४वीं नेटिव इन्फेंट्री की ६वीं कम्पनी का एक सिपाही था जिसने कारतूस को मुंह लगाने से इनकार कर दिया और २९मार्च१८५७ को सार्जेंट मेजर यूजसन को गोली मारकर तथा लेफ्टिनेंट बो की तलवार से हत्या कर दी। इस कृत्य के लिए मंगल पांडे को ८अप्रैल १८५७को फांसी दे दी गई। जबकि क्रांति के विद्रोह की वास्तविक शुरुआत १०मई १८५७ को मेरठ से हुई जब यहां के सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूस के मुद्दे पर अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चलाई और शस्त्रागार लूट लिया फिर दिल्ली की ओर बढ़ चले। विद्रोही सैनिकों ने ११मई १८५७ को दिल्ली पर अधिकार करके बहादुर शाह ज़फ़र को भारत का सम्राट घोषित कर दिया।
1857 की क्रांति के विद्रोह प्रसार के प्रमुख केंद्र:
(१) दिल्ली:
- मेरठ से आए विद्रोहियों ने १२ मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया, बख्त खाँ को दिल्ली विद्रोह का प्रमुख नेता घोषित किया गया और बहादुर शाह जफर को दिल्ली का सम्राट घोषित किया गया।
- बहादुर शाह ज़फ़र ने बख्त खाँ को साहब-ए-आलम बहादुर का खिताब दिया।
- अंग्रेजों ने अंग्रेजों ने जॉन निकलसन के नेतृत्व में दिल्ली विद्रोह को दबाने का प्रयास किया, लेकिन जॉन निकलसन यहाँ मारा गया, हडसन ने पुनः दिल्ली पर कब्जा किया।
- बहादुर शाह जफर के दोनों बेटों को मार दिया गया। बहादुर शाह जफर जो हुमायूं के मकबरे में छुपे हुए थे वहां से गिरफ्तार कर रंगून निर्वासित कर दिया गया जहां १८६२ में उनकी मृत्यु हो गयी। मिर्जा गालिब इस विद्रोह के समय दिल्ली में ही थे।
(२) लखनऊ:
- 4 जून को वाजिद अली शाह की रानी, बेगम हजरत महल ने विद्रोह करते हुए अपने अल्प वयस्क पुत्र बिरजिस कादिर को अवध का नवाब घोषित कर दिया और भारतीय विद्रोही सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों के लखनऊ रेजिडेंट पर हमला कर दिया। इस क्रांति में लखनऊ में मारे जाने वाले सैन्य अधिकारी थे (१) जनरल नील (२) जनरल हैवलॉक (३) सर हेनरी लॉरेंस।
- २१ मार्च १८५८ को सर कोलिन कैंपबेल ने गोरखा रेजीमेंट (नेपाल के महाराजा जंग बहादुर द्वारा भेजे गए) की सहायता से अंग्रेजों ने पुनः लखनऊ पर कब्जा किया और अंत में बेगम हजरत महल की हार हुई। अनुकूल परिस्थितियां न होने के कारण बेगम हजरत महल, बिरजिस कादिर और नाना साहब के साथ नेपाल चली गयी।
(३) कानपुर:
- 5 जून को कानपुर में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ( धोंदू पंत ) के नेतृत्व में विद्रोह हुआ और नाना साहब को पेशवा घोषित किया गया। नाना साहब के Commander in Chief का नाम तात्या टोपे (रामचंद्र पांडूरंग ) था। अजीमुल्ला खाँ, नाना साहब के प्रमुख सलाहकार थे जो क्रांतिदूत के नाम से प्रसिद्ध थे।
- कानपुर में बड़ी संख्या में अंग्रेजी स्त्रियों और बच्चों की हत्या कर दी गई १८५७ की क्रांति के समय यह घटना विद्रोहियों पर एक बड़ा धब्बा माना जाता है।
- सेनापति कैंपबेल के नेतृत्व में अंग्रेजों ने कानपुर पर पुनः कब्जा किया नाना साहब पराजित होकर नेपाल चले गए और तात्या टोपे कानपुर से ग्वालियर चले गए।
(४) झाँसी:
- 4 जून को रानी लक्ष्मीबाई ने अनुकूल परिस्थितियां देखकर विद्रोह कर दिया। लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए झांसी से ग्वालियर चली गई जहाँ सर ह्यूरोज से लड़ते-लड़ते अंत में शहीद हुई। ग्वालियर में ही रानी लक्ष्मीबाई की समाधि है।
- ग्वालियर में तात्या टोपे भी रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़े थे।
- रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु पर सर ह्यूरोज ने कहा “भारतीय विद्रोहियों में यहां सोई हुई औरत अकेली मर्द है”।
- तात्या टोपे को उनके ही मित्र मानसिंह ने धोखा देकर अंग्रेजों से पकड़वा दिया जब वह पारो के जंगल में अपने कैंप में सो रहे थे। १८ अप्रैल १८५८ को तात्या टोपे को फांसी दे दी गई।
झाँसी की रानी – लक्ष्मी बाई
मूल नाम – मणिकर्णिका
जन्म – 19 नवंबर 1835 को गोलघर, वाराणसी
14 वर्ष की उम्र में लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर राव के साथ हुआ। महाराज की असमय मृत्यु हो गई किसी उत्तराधिकारी के अभाव में लॉर्ड डलहौजी ने व्यपगत के सिद्धांत के अंतर्गत १८५३ में झाँसी का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया । रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी की गद्दी न दिए जाने से अंग्रेजों से नाराज थी और अपना राज्य वापस पाने के लिए मौके की तलाश में थी।
(५) बिहार:
- बिहार में क्रांति के प्रमुख नेता कुँवर सिंह थे और प्रमुख केंद्र जगदीशपुर था। १८५७ की क्रांति में ये सबसे वृद्ध (लगभग ८० साल)और बहादुर नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ सर्वाधिक बार जीत हासिल की थी। २५ जुलाई,१८५७ को उन्होंने दानापुर के सिपाहियों के साथ मिलकर आरा शहर पर कब्ज़ा किया था और उसके बाद बांदा, रीवा, आजमगढ़ , बनारस, बलिया, गाज़ीपुर और गोरखपुर जैसे कई ब्रिटिश ठिकानों पर अधिकार किया।एक रात बलिया के पास शिवपुरी तट से जब वह गंगा पार कर रहे थे तो अंग्रेजी सेना ने पीछे से हमला बोला। अंग्रेज़ों की एक गोली बाबू कुँवर सिंह के हाथ को भेदती हुई निकल गई। घाव काफी गहरा था। गोली का ज़हर पूरे शरीर में फैलने का खतरा था। बाबू कुंवर सिंह ने हंसते-हंसते अपना हाथ काट कर गंगा मैया कोअर्पित कर दिया।इसी अवस्था में वह जगदीशपुर पहुंचे। २३अप्रैल, १८५८ को उनका राज्याभिषेक किया गया तथा २६अप्रैल, १८५८ को वो वीरगति को प्राप्त हुए।
- पटना में इस क्रांति का नेतृत्व एक पुस्तक विक्रेता पीर अली ने किया।
- बिहार में विद्रोह का दमन विलियम टेलर और मेजर विंसेट आयर ने किया।
(६) इलाहाबाद तथा बनारस:
- इलाहाबाद और वाराणसी यहां विद्रोह का नेतृत्व लियाकत अली ने किया तथा विद्रोह का दमन जनरल नील ने किया ।
(७) फैजाबाद:
- यहाँ विद्रोह का नेतृत्व मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने किया। उन्होंने लोगों से कहा “सारे लोग काफिर अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो जाओ और उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दो”।
- इस विद्रोह के समय ये अंग्रेजों के सबसे कट्टर दुश्मन थे तथा इनके ऊपर 50,000 का इनाम था। इनके बारे में अंग्रेजों ने कहा कि “अदम्य साहस के गुणों से परिपूर्ण और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति तथा विद्रोहियों में सर्वोत्तम सैनिक है”।
(८) बरेली:
- यहाँ विद्रोह का नेतृत्व खान बहादुर खान ने किया संपूर्ण रूहेलखंड में यही एकमात्र विद्रोही नेता थे। यहां विद्रोह का दमन सर कोलिन कैंपबेल ने १८५८ में किया।
- (९) गोरखपुर: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व गजाधर सिंह ने किया।
- (१०) मथुरा: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व देवी सिंह ने किया ।
- (११) फतेहपुर: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व अजीमुल्ला खान ने किया।
- (१२) संभलपुर: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व सुरेंद्र साईं ने किया ।
- (१३) राजस्थान: यहाँ कोटा क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व जगदयाल और हरदयाल ने किया ।
- (१४) असम: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व दीवान मनिराम दत्त ने किया ।
- (१५) जोधपुर राज्य /मारवाड़ क्षेत्र: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व आउवा के ठाकुर कुशल सिंह ने किया ।
- (१६) मेरठ: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व कदम सिंह ने किया।
- (१७) हरियाणा: यहाँ विद्रोह का नेतृत्व राव तुलाराम ने किया ।
- (१८) पंजाब: यहाँ नामधारी सिक्खों ने सशस्त्र विद्रोह किया।
1857 की क्रांति के असफलता के कारण:
- विद्रोह का क्षेत्रीय स्वरूप: मेरठ से प्रारम्भ यह विद्रोह शुरुआत में बहुत तेजी से फैला लेकिन यह मुख्यत: उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत (जैसे- अवध, सिंध,कश्मीर और पंजाब के अधिकांश भाग) और मध्य प्रदेश तक ही सीमित रहा।बड़ी रियासतें, हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और समूचा दक्षिण भारत भी इसमें भाग नहीं लिया।
- प्रभावी नेतृत्व का अभाव : विद्रोहियों में एक प्रभावी नेता का अभाव था जिसका बहुत बड़े हिस्से पर हो। हालाँकि नाना साहेब, तात्या टोपे, कुंवर सिंह और रानी लक्ष्मीबाई आदि नेता थे, लेकिन वे समग्र रूप से आंदोलन को प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके।
- ब्रिटिश श्रेष्ठता : १९वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश साम्राज्य शक्ति के शिखर पर था। रेल, डाक, तार एवं परिवहन तथा संचार के अन्य सभी साधनों का लाभ अंग्रेज़ों को मिला। जबकि विद्रोही संपर्क रहित अलग थलग पड़े रहे।
- जनसमर्थन का अभाव : शिक्षित उच्च, मध्यम वर्ग और व्यापारी वर्ग विद्रोह में भाग नही लिए। जातीय आधार पर अंग्रेजों की मदद करने वाले सिक्ख, गोरखा तथा पठान थे। कुछ भारतीय नरेशों (कश्मीर के शासक, ग्वालियर के सिंधिया), बंगाल के अमीर और जमींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ों की मदद की।
1857 की क्रांति (1857 ki Kranti) के परिणाम :
- १८५७ की क्रांति के बाद भारत में कंपनी राज का अंत हुआ तथा ब्रिटिश भारत का प्रत्यक्ष नियंत्रण ब्रिटिश क्राउन के हाथों में आ गया।
- १८५७ की क्रांति के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट ने राज्य हड़प की नीति का त्याग कर दिया और भारतीय राजाओं को गोद लेने की अनुमति मिल गई।
- 1857की क्रांति के बाद सेना का पुनर्गठन किया गया I बंगाल प्रेसीडेंसी में यूरोपीय तथा भारतीय सैनिकों का अनुपात 1:3 कर दिया गया। भारतीयों की नियुक्ति कम महत्वपूर्ण पदों पर की जाने लगी।
- क्रांति के बाद अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, जिससे कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा।
- यद्यपि की १८५७ की क्रांति पूरी तरीके से सफल नहीं हुई, फिर भी भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ।
1857 की क्रांति पर लिखी गई पुस्तकें –
BOOK NAME | WRITER’S NAME |
द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस | विनायक दामोदर सावरकर |
‘1857’ | S.N.Sen |
The first Indian war of independence:1857–1859 | कार्ल मार्क्स |
द इंडियन म्यूटिनी ऑफ 1857 | जॉर्ज ब्रूस मल्लेसन |
ग्रेट म्यूटिनी | क्रिस्टोफर हिबर्ट |
रिलिजन एंड आइडियोलॉजी ऑफ द रिबेल ऑफ 1857 | इकबाल हुसैन |
एक्सकवेशन ऑफ ट्रूथ: अनसुंग हीरोज़ ऑफ 1857 वार ऑफ इंडिपेंडेंस | खान मोहम्मद सादिक खान |
1857 की क्रांति के बारे में प्रमुख कथन-
“तथा कथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम ना प्रथम,न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था” – आर. सी. मजूमदार |
“सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम”- वी० डी ० सावरकर |
“एक संस्थापित सरकार के विरुद्ध भारतीय सेना का विद्रोह” – Sir John Seeley |
“धार्मिक युद्ध (धर्मांधों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध)”- L.E.R. REES |
“जातियों का युद्ध या काला गोरा संघर्ष”- J. G. Medley |
“बर्बरता और सभ्यता के बीच युद्ध”- T.R. Holmes |
“हिंदू मुस्लिम षड्यंत्र”-सर जेम्स आउट्रम और W TAYLOR |
“राष्ट्रीय विद्रोह”- बेंजामिन डिसराइली(British PM) |
“आरंभ में सैनिक विद्रोह था जो बाद में राष्ट्रीय विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम में परिणत हो गया”- S. N. SEN |
“भारतीय जनता का संगठित संग्राम था” -जवाहर लाल नेहरू |
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