Hello दोस्तों 😊 ! यहाँ आप ब्रह्म समाज (Brahm samaj) के बारे में जानेंगे। ब्रह्म समाज हिन्दू धर्म में पहला सुधार आन्दोलन था जिस पर आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा का बहुत प्रभाव पड़ा था।
ब्रह्म समाज (Brahm samaj) की स्थापना:
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय द्वारा २०अगस्त १८२८ को ब्रह्म सभा के नाम की गई, इसे ही बाद में ब्रह्म समाज कहा गया।
ब्रह्म समाज (Brahm samaj) की स्थापना के उद्देश्य:
ब्रह्म समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य हिंदू समाज के दोष अंधविश्वास और सामाजिक कुरूतियो को दूर कर हिंदू समाज में सुधार लाना था।
राजा राम मोहन राय
समाज सुधार आंदोलन की शुरुआत बंगाल से हुई तथा राजा राम मोहन राय पहले नेता थे। वह बहुभाषाविद थे अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, ग्रीक, लैटिन, जर्मन और हिब्रू आदि भाषाओं का ज्ञान था।
भारतीय पुर्नजागरण के जनक : राजा राम मोहन राय जन्म: 22 मई 1772 को एक ब्राह्मण परिवार में
जन्म स्थान – राधानगर , जिला वर्धमान, बंगाल
- CHRONOLOGY :
- १८०९ में तुहफ़ात-उल-मुवाहिदीन ( फारसी भाषा ) में प्रकाशित किया
- १८१४ –१५ में आत्मीय सभा की स्थापना
- १८१६ ई ० में वेदांत सोसायटी की स्थापना
- १८१७ में हिंदू कॉलेज ( प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता ) की स्थापना
- १८२१ में कलकत्ता यूनिटेरियन मिशन के स्थापना ( सह संस्थापक )
- १८२२ में मिरात–उल–अख़बार( फारसी भाषा )और ब्रह्मनिकल (अंग्रेजी पत्रिका ) का प्रकाशन किया
- १८२५ ई० में वेदांत कॉलेज ( कलकत्ता ) की स्थापना
- १८२८ को ब्रह्म सभा/ ब्रह्म समाज की स्थापना की
- १८२९ में सती प्रथा पर रोक
- १८३० में मुगल सम्राट अकबर द्वितीय द्वारा ‘राजा’ की उपाधि
- १८३३ में ब्रिस्टल इंग्लैंड नामक स्थान पर मृत्यु
- मूर्तिपूजा, जाति प्रथा, सती प्रथा के विरोधी थे।
- एकेश्वरवाद में विश्वास था नास्तिक नही थे।
- १८१४ –१५ में आत्मीय सभा तथा १८१६ ई ० में वेदांत सोसायटी की स्थापना की।
- १८१७ में डच घड़ीसाज डेविड हेयर के सहयोग से कलकत्ता में हिंदू कॉलेज ( प्रेसिडेंसी कॉलेज ) की स्थापना की।
- ईसाई धर्म से प्रभावित थे पर ईसाई धर्म स्वीकार नहीं किया हिंदू धर्म की बुराइयों पर प्रहार किया लेकिन ईसाई धर्म में व्याप्त अंधविश्वासों पर भी चोट की।
- १८२० ई ० में प्रीसेप्ट्स ऑफ जीसस नाम से बाइबल का अनुवाद किया जिसमे केवल नैतिक बातों का समावेश किया जीसस के चमत्कारो का वर्णन नहीं किया।
- भारतीय पत्रकारिता के अग्र दूत के रूप में १८२१ में अपनीपहली पत्रिका संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया। सती प्रथा का विरोध करने के लिए इसी पत्रिका का सहारा लिया। १८२१ में कलकत्ता यूनिटेरियन मिशन के सह संस्थापक भी रहे।
- १८२२ में फारसी भाषा में मिरात–उल–अख़बार का प्रकाशन किया और ब्रह्मनिकल (English magazine) निकाली।
- राजा राम मोहन राय पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान से प्रभावित थे और मानते थे कि भारतीय प्राच्य ज्ञान कितना भी महान क्यो न हो लेकिन वर्तमान भारतीय समाज में व्याप्त कमजोरियों को पश्चिमी ज्ञान विज्ञान के सहारे ही दूर किया जा सकता है।
- १८२५ ई ० में वेदांत कॉलेज की स्थापना कलकत्ता में की जिसमे पश्चिमी वैज्ञानिक अध्ययन के साथ पारंपरिक भारतीय शिक्षा भी दी जाती थी।
- राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के विरोध में व्यापक जन आंदोलन चलाया उन्हीं के प्रयासों से तत्कालिक गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने १८२९ में नियम १७ द्वारा सती प्रथा पर रोक लगाई, जो पहले बंगाल में १८२९ में फिर १८३० में बम्बई तथा मद्रास में लागू हुआ।
- १८३० में मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने राम मोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया तथा अपनी रुकी हुई पेंशन के मुद्दे पर महारानी से बात करने के लिए उन्हें ब्रिटेन भेजा। उस समय समुंद्र मार्ग से ब्रिटेन जाने वाले वे प्रथम भारतीय थे।
- राजा राम मोहन राय के इंग्लैंड जाने के बाद ब्रह्म समाज की बागडोर रामचंद्र विद्या वागीश ने संभाली।
- १८३३ में ब्रिस्टल इंग्लैंड नामक स्थान पर इनकी मृत्यु हो गई जहां आज भी उनकी कब्र हैं।
- समाज सुधार आंदोलन के नेता होने के कारण राजा राम मोहन राय को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे-
- नव जागरण का अग्रदूत
- सुधार आंदोलन के प्रवर्तक
- आधुनिक भारत के पिता
- नव भारत का तारा
- आधुनिक भारत के निर्माता
- आधुनिक भारत का युग दूत
- भारतीय पुनर्जागरण के जनक
- भारत के पहले संविधान सुधारक